सुप्रीम कोर्ट ने आज यह निर्णय सुनाया कि, क्या न्यायिक सेवा में प्रवेश स्तर की नौकरियों के लिए आवेदन करने के लिए न्यूनतम वकालत का अनुभव होने की शर्त को फिर से लागू किया जाना चाहिए।
मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई, न्यायमूर्ति ए. जी. मसीह और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने ऑल इंडिया जजेज़ एसोसिएशन मामले में आज यह फैसला सुनाया।
अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बिना किसी अनुभव के सीधे नए कानून स्नातकों को न्यायिक सेवा में शामिल होने की अनुमति देने से कई समस्याएं उत्पन्न हुई हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि “पिछले 20 वर्षों में, जब से बिना एक दिन की भी वकालत किए सीधे नए कानून स्नातकों की नियुक्ति न्यायिक अधिकारियों के रूप में की जा रही है, यह अनुभव सफल नहीं रहा है। ऐसे नए स्नातकों की नियुक्ति से कई तरह की समस्याएं सामने आई हैं।”
“जज जब अपने पद पर कार्यभार संभालते हैं, उसी दिन से उन्हें जीवन, स्वतंत्रता, संपत्ति और मुकदमेबाज़ों की प्रतिष्ठा से जुड़े गंभीर मामलों से निपटना होता है। न तो केवल किताबों से प्राप्त ज्ञान और न ही सेवा-पूर्व प्रशिक्षण, अदालत प्रणाली और न्याय के प्रशासन के व्यावहारिक अनुभव का विकल्प बन सकते हैं।”
“यह अनुभव तभी संभव है जब उम्मीदवारों को अदालत की कार्यप्रणाली, और वहां वकीलों व जजों के कामकाज को देखने का अवसर मिले। उम्मीदवारों को जज बनने की जटिलताओं को समझने के लिए तैयार रहना चाहिए। इसलिए, हम अधिकांश उच्च न्यायालयों की इस राय से सहमत हैं कि कुछ वर्षों के न्यूनतम वकालती अनुभव की अनिवार्यता ज़रूरी है।”