आजकल जब भी हम नया फोन, लैपटॉप या कोई भी महंगा गैजेट खरीदते हैं, तो एक ऑप्शन जरूर दिखाई देता है, ईएमआई पर ले लीजिए। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि नो कॉस्ट ईएमआई और रेगुलर ईएमआई में फर्क क्या होता है? आइए जानते हैं।
ईएमआई यानी इजी मंथली इंस्टॉलमेंट मतलब चीजों को किश्तों में खरीदना। ना एक साथ ज्यादा पैसे देने की टेंशन और ना जेब पर भारी बर्डन। लेकिन ईएमआई भी दो टाइप की होती है। एक होती है नो कॉस्ट ईएमआई और दूसरी रेगुलर ईएमआई। तो चलिए दोनों का फर्क समझते हैं।
क्या होती है नो कॉस्ट ईएमआई?
नो कॉस्ट ईएमआई सुनकर लगता है कि बिना इंटरेस्ट के ईएमआई कितना बढ़िया। जितने का प्रोडक्ट उतनी ही किश्तें कोई एक्स्ट्रा चार्ज नहीं। लेकिन असलियत थोड़ी अलग है। मान लीजिए एक फोन की असली कीमत है ₹25,000। अगर आप उसे एक मुश्त खरीदते है तो कंपनी आपको ₹2000 का डिस्काउंट देती और फोन आपको ₹23,000 का मिल जाता। लेकिन अगर आपने नो कॉस्ट ईएमआई ली तो आपको पूरी ₹25,000 की कीमत चुकानी पड़ती है। वो जो ₹2,000 का डिस्काउंट था वो हट गया और वही बैंक को इंटरेस्ट के नाम पर मिल गया। और इतना ही नहीं कई बार प्रोसेसिंग फीस भी ली जाती है। तो ईएमआई नो कॉस्ट सिर्फ नाम का होता है। असल में उसकी कीमत पहले से प्रोडक्ट में जोड़ दी जाती है।
क्या होती है नो रेगुलर ईएमआई-कौन सी बेहतर?
अब बात करते हैं रेगुलर ईएमआई की। इसमें आपको बैंक या फाइनेंस कंपनी इंटरेस्ट के साथ ईएमआई देती है। इसमें सब कुछ ओपनली बताया जाता है। कितना इंटरेस्ट लगेगा, हर महीने कितनी किस्त होगी और कुल कितना देना पड़ेगा। फॉर एग्जांपल अगर आपने ₹20000 का फोन 12% इंटरेस्ट पर एक साल के लिए लिया तो आपको 1300 से 1500 तक ज्यादा देना पड़ेगा। यानी टोटल पेमेंट हो जाएगा ₹21,300 से भी ज्यादा। और हां, रेगुलर ईएमआई में भी वह डिस्काउंट नहीं मिलता जो लमसम पेमेंट करने पर मिलता है। यानी ईएमआई में आप प्रोडक्ट की पूरी कीमत से ज्यादा ही चुकाते हैं।
नो कॉस्ट ईएमआई या रेगुलर ईएमआई?
तो अब सवाल यह है कि अगर ईएमआई लेनी ही है तो कौन सी ईएमआई बेहतर है? अगर आपके पास एक साथ पैसे नहीं है और आप 6 से 9 महीने में धीरे-धीरे पेमेंट करना चाहते हैं तो नो कॉस्ट ईएमआई ले सकते हैं। लेकिन लेने से पहले जरूर चेक करें कि क्या आपको डिस्काउंट मिल रहा था? प्रोसेसिंग फीस कितनी है? ईएमआई लेने पर टोटल कितना देना पड़ेगा? तो अगली बार ईएमआई का ऑप्शन दिखे तो बिना सोचे समझे क्लिक मत करिए। थोड़ा सोचिए, थोड़ा टोटल पेमेंट कैलकुलेट करिए और उसके बाद ही सही फैसला लीजिए।